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मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण पर जारी विवाद और सच्चाई

📰 मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण: क्या है पूरा मामला?

मध्य प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से 27% ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। यह मुद्दा अब एक बार फिर सुर्खियों में है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई शुरू होने जा रही है। आइए जानते हैं कि यह मामला क्या है, सरकार का पक्ष क्या है और विरोध क्यों हो रहा है

⚖️ पृष्ठभूमि: कब और कैसे शुरू हुआ विवाद?

साल 2019 में कांग्रेस सरकार ने राज्य में ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला लिया था।
इस निर्णय के बाद कुल आरक्षण की संख्या 73% तक पहुँच गई —
जिसमें शामिल हैं:

अनुसूचित जाति (SC) – 16%

अनुसूचित जनजाति (ST) – 20%

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) – 27%

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) – 10%

यह आँकड़ा संविधान द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा से काफी ऊपर चला गया।
इसी वजह से यह मामला अदालत तक पहुँचा, और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने फिलहाल 14% से अधिक आरक्षण पर रोक लगा दी।

🏛️ सुप्रीम कोर्ट में क्या चल रहा है?

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
8 अक्टूबर 2025 से इस पर रोज़ाना सुनवाई होगी।
राज्य सरकार की तरफ़ से कहा गया है कि —

> “ओबीसी वर्ग अब भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है, इसलिए 27% आरक्षण ज़रूरी है।”

सरकार का तर्क है कि समाज में ओबीसी वर्ग की हिस्सेदारी 50% से अधिक आबादी की है, लेकिन सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम है।

💬 सरकार का पक्ष

मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि —

1. 27% आरक्षण देने का फैसला “समान अवसर” और “सामाजिक न्याय” के सिद्धांत पर आधारित है।

2. 50% सीमा को “विशेष परिस्थितियों” में पार किया जा सकता है, जैसा कि इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) केस में कहा गया था।

3. सरकार का दावा है कि यह निर्णय रामजी महाजन आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसने समाज के पिछड़ेपन के ठोस आंकड़े दिए है 

🗣️ विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का तर्क

इस निर्णय का विरोध करने वालों का कहना है कि —

50% से अधिक आरक्षण संवैधानिक सीमा का उल्लंघन है।

इससे सामान्य वर्ग (General Category) के लिए अवसर कम हो जाएंगे।

राज्य सरकार ने बिना पर्याप्त जनगणना या सामाजिक अध्ययन के इतना बड़ा फैसला लिया है।

इसके अलावा, हाल ही में एक वायरल दस्तावेज़ सामने आया, जिसमें कथित तौर पर पौराणिक कथाएँ और जातिगत उदाहरण दिए गए थे।
सरकार ने स्पष्ट किया कि यह हिस्सा उसके आधिकारिक हलफनामे का नहीं था और गलत तरीके से फैलाया गया।

📊 सामाजिक और राजनीतिक असर

27% आरक्षण का मुद्दा न केवल कानूनी है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील है।

राज्य के लगभग 52% वोटर OBC समुदाय से आते हैं।

चुनावी राजनीति में यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है।
इसलिए किसी भी पार्टी के लिए इस मुद्दे पर राजनीतिक संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।

🔍 आगे क्या होगा?

अब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
यदि कोर्ट 27% आरक्षण को वैध मान लेता है, तो यह निर्णय पूरे देश में एक नया मिसाल (precedent) बन सकता है।
लेकिन अगर कोर्ट इसे असंवैधानिक ठहराता है, तो राज्य सरकार को वापस 14% आरक्षण व्यवस्था पर लौटना पड़ सकता है।

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